तुम्हें याद है वो दिन
जब हम आखिरी बार मिले थे
फिर कभी ना मिलने के लिए।
तुम्हें क्या महसूस हुआ
ये तो नहीं जानती
पर जुदाई के आखिरी पलों में
मैं बिल्कुल हैरान थी।
कुछ ऐसा लग रहा था जैसे
अलग कर दिया है मेरी रूह को
मेरे ही जिस्म से
दिल काँप रहा था मेरा
इस अनचाही विदाई की रस्म से।
एक अनजाने से खौफ ने
जकड़ लिया था मुझे
और तेरे आँखों से ओझल होने के बाद भी
अपलक देखती रही मैं बस तुझे।
- मोनिका जैन 'पंछी'
जब हम आखिरी बार मिले थे
फिर कभी ना मिलने के लिए।
तुम्हें क्या महसूस हुआ
ये तो नहीं जानती
पर जुदाई के आखिरी पलों में
मैं बिल्कुल हैरान थी।
कुछ ऐसा लग रहा था जैसे
अलग कर दिया है मेरी रूह को
मेरे ही जिस्म से
दिल काँप रहा था मेरा
इस अनचाही विदाई की रस्म से।
एक अनजाने से खौफ ने
जकड़ लिया था मुझे
और तेरे आँखों से ओझल होने के बाद भी
अपलक देखती रही मैं बस तुझे।
- मोनिका जैन 'पंछी'
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteBahut badhiya
ReplyDeleteek ek pal jivant kar diya aap ne
बहुत सुंदर रचना👌
ReplyDeletekis ke saath aisa nahi hota... sabke man ki baat!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-11-2017) को "खिजां की ये जबर्दस्ती" (चर्चा अंक 2793) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर....
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