Tuesday, November 14, 2017

किन धागों से सी लूँ बोलो.....श्वेता सिन्हा

मैं कौन खुशी जी लूँ बोलो।
किन अश्कों को पी लूँ बोलो।
बिखरे लम्हों की तुरपन को
किन धागों से सी लूँ बोलो।

पलपल हरपल इन श्वासों से
आहों का रिसता स्पंदन है,
भावों के उधड़े सीवन को,
किन धागों से सी लूँ बोलो।

हिय मुसकाना चाहे ही न
अधरों से झरे फिर कैसे खुशी,
पपड़ी दुखती है जख़्मों की,
किन धागों से सी लूँ बोलो।

मैं मना-मनाकर हार गयी
तुम निर्मोही पाषाण हुये,
हिय वसन हुए है तार तार,
किन धागों से सी लूँ बोलो

भर आये कंठ न गीत बने
जीवन फिर कैसे मीत बने,
टूटे सरगम की रागिनी को,
किन धागों से सी लूँ बोलो।


7 comments:

  1. हिय मुसकाना चाहे ही न, होठों से झरे फिर कैसे खुशी,
    पपड़ी दुखती है जख़्मों की,किन धागों से सी लूँ बोलो।
    ... टपाक से चिल्लाकर बोलती मुखर रचना।।।
    बधाई और शुभकामनाएँ श्वेता जी।।।।

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  2. शानदार हल पल पल पल ये रुप नगर के शहजादे बस यूं ही पीडा देते हैं जब हृदय वसन ही तार हुए तो किस धागे से सीं ओ गे।

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  3. टूटे सरगम की रागिनी किन धागों से सी लूँ बोलो 👌👌👌 बेहद सुंदर ,👏👏👏👏

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  4. मैं कौन खुशी जी लूँ बोलो
    किन अश्कों को पी लूँ बोलो....बहुत सुंदर

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  6. भर आये कंठ न गीत बने
    जीवन फिर कैसे मीत बने,
    टूटे सरगम की रागिनी को,
    किन धागों से सी लूँ बोलो।......बहुत सुन्दर

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  7. "हिय मुसकाना चाहे ही न
    अधरों से झरे फिर कैसे खुशी,
    पपड़ी दुखती है जख़्मों की,
    किन धागों से सी लूँ बोलो।"

    आपकी यह पूरी रचना सत्यता दर्शा रही है...लेकिन ये ऊपर की पंक्तियाँ मुझे बेहद पसंद आयी।

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