Monday, November 13, 2017

शब्द... राजेन्द्र जोशी

लड़ते हैं, झगड़ते हैं
डराते हैं, धौंस दिखाते हैं

डरते हैं, दुबकते हैं
प्रेम करते ,

कांपते हैं
कभी तानाशाह होकर
भीख मांगते दिखते हैं.

मैं और वे
खेला करते हैं
मिलजुल कर
भोथरे हुए शब्दों को
धार देते हुए

हो जाते हैं मौन
अपना ही ताकत से
आपसी खेल में.


-राजेन्द्र जोशी
पत्रिका..8 मई 2016

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14-11-2017) को
    "कभी अच्छी बकवास भी कीजिए" (चर्चा अंक 2788)
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. http://bulletinofblog.blogspot.in/2017/11/blog-post_13.html

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