Sunday, August 6, 2017

मैं बैचैन था रातभर लिखता रहा....हिन्दी साहित्य मंच से


दर्द कागज़ पर मेरा बिकता रहा..!!
मैं बैचैन था रातभर लिखता रहा....!!

छू रहे थे सब बुलंदियाँ आसमान की..!!
मैं सितारों के बीच, चाँद की तरह छिपता रहा....!!

दरख़्त होता तो, कब का टूट गया होता..!!
मैं था नाज़ुक डाली, जो सबके आगे झुकता रहा....!!

बदले यहाँ लोगों ने, रंग अपने-अपने ढंग से..!!
रंग मेरा भी निखरा पर, मैं मेहँदी की तरह पिसता रहा....!!

जिनको जल्दी थी, वो बढ़ चले मंज़िल की ओर..!!
मैं समन्दर से राज गहराई के सीखता रहा....!!

........हिन्दी साहित्य मंच से

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (07-08-2017) को "निश्छल पावन प्यार" (चर्चा अंक 2698 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    बाई-बहन के पावन प्रें के प्रतीक हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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