काट कर पत्थर
नदी होकर जनमना
फिर ठोकरें खाते हुए
दिन रात बहना
और बहते बहते
ना जाने कितना कुछ
अच्छा - बुरा
सब समेटते जाना
और बहुत कुछ
पीछे भी छोड़ते जाना
नदी बने रहने की प्रक्रिया में
बहुत कुछ छूट जाता है
बहुत कुछ टूट जाता है
सच....
नदी होना
आसान नहीं होता
-मंजू मिश्रा
“Have Faith in Man, whether he appears to you to be a very learned one or a most ignorant one.”
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-08-2017) को "'धान खेत में लहराते" " (चर्चा अंक 2694) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत खूब सुंदर रचना
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