प्यार मुझको भावना तक ले गया
भावना को वन्दना तक ले गया।
रूप आँखों में किसी का यूँ बसा
अश्रु को आराधना तक ले गया।
दर्द से रिश्ता कभी टूटा नहीं
पीर को संवेदना तक ले गया।
हारना मैने कभी सीखा नहीें
जीत को संभावना तक ले गया।
मैं न साधक हूँ , न कोई संत हूँ
शब्द को बस साधना तक ले गया।
अब मुझे क्या और उनसे चाहिए
एक पत्थर, प्रार्थना तक ले गया।
-डॉ. डी. एम. मिश्र
सुन्दर।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-08-2017) को कई सरकार खूंटी पर, रखी थी टांग डेरे में-: चर्चामंच 2711 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अति सुन्दर
ReplyDeleteरूप आँखों में किसी का यूँ बसा
ReplyDeleteअश्रु को आराधना तक ले गया
प्रेम का सफर प्रार्थना तक......
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर..