जब आप बीमार रहते हैं तो
बना रहता है हुजूम
तीमारदारों का
और ये..
वो ही रहते हैं
जिनकी बीमारी में...
आपने चिकित्सा व्यवस्था
करवाई थी
पर भगवान न करे...
आपकी मृत्यु हो गई
तो...वे
आपको आपके घर तक
पहुंचा भी देंगे..
और फिर...
....आपकी देह के
इर्द-गिर्द...
रिश्तेदारों का
जमावड़ा शुरु हो जाएगा...
कुछ ये जानने की
कोशिश में रहेंगे कि
हमें कुछ दे गया या नहीं....
यदि नहीं तो...
आस लग जाती है
घर के बचे लोगों से
कि निशानी को तौर पर
क्या कुछ मिलेगा..
पर डटे रहते हैं
पूरे तेरह दिन तक...
-मन की उपज
सच की कठोरता को आत्मसात करना होगा......
ReplyDeleteबहुत खूब ....
ReplyDeleteमंगलकामनाएं आपको !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (13-08-2017) को "आजादी के दीवाने और उनके व्यापारी" (चर्चा अंक 2695) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शाश्वत सत्य है मृत्यू उसके बाद बेकार की बात है सोचना :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
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