प्यार मुझको भावना तक ले गया
भावना को वन्दना तक ले गया।
रूप आँखों में किसी का यूँ बसा
अश्रु को आराधना तक ले गया।
दर्द से रिश्ता कभी टूटा नहीं
पीर को संवेदना तक ले गया।
हारना मैने कभी सीखा नहीं
जीत को संभावना तक ले गया।
मैं न साधक हूँ , न कोई संत हूँ
शब्द को बस साधना तक ले गया।
अब मुझे क्या और उनसे चाहिए
एक पत्थर, प्रार्थना तक ले गया।
-कवि डी. एम. मिश्र
प्रस्तुतिः सुशील कुमार
गीत को गंतव्य तक लाने का अगणित आभार!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गजल....
ReplyDeleteवाह!!!
सुन्दर।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17-08-17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2699 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
मार्मिक विचार सोचने को विवश करती ,आभार ,"एकलव्य"
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