लड़ते हैं झगड़ते हैं
डराते हैं, धौंस दिखाते हैं.
डरते हैं, दुबकते हैं
प्रेम करते,
कांपते हैं
कभी तानाशाह होकर
कभी झोली फैलाकर
भीख मांगते दिखते हैं
मैं और वे
खेला करते हैं
मिलजुल कर
भोथरे हुए शब्दों को
धार देते हुए
हो जाते हैं मौन
अपनी ही ताकत से
आपसी खेल में.
- राजेन्द्र जोशी
राजस्थान पत्रिका..8 मई 2016
वाह....
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (26-08-2017) को "क्रोध को दुश्मन मत बनाओ" (चर्चा अंक 2708) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
गणेश चतुर्थी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब।
ReplyDeleteउम्दा ! शुभकामनाओं सहित ,आभार ''एकलव्य"
ReplyDelete👌👌👌👌👌
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