ढल गया आफताब ऐ साकी!
ला पिला दे शराब ऐ साकी!
या सुराही लगा मेरे मूंह से
या उलट दे नकाब ऐ साकी!
मैकदा छोड़ कर कहाँ जाऊं
है ज़माना ख़राब ऐ साकी!
जाम भर दे गुनाहगारों के
ये भी है इक सवाब ऐ साकी!
आज पीने दे और पीने दे
कल करेंगे हिसाब ऐ साकी!
वाह!
ReplyDeleteबहुत -बहुत आभार आदरणीय यशोदा बहन जी पाठकों के लिए श्रेष्ठ रचना को साझा करने के लिए। सादर।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeletewah bahur khub...
ReplyDelete