Monday, April 3, 2017

जिन्दगी का गणित..........मंजू मिश्रा




बरस महीने दिन 
छोटे छोटे होते 
अदृश्य ही हो जाते हैं 
और मैं 
बैठी रहती हूँ 
अभी भी 
उनको उँगलियों पे 
गिनते हुए 
बार बार 
हिसाब लगाती हूँ 
मगर
जिन्दगी का गणित है कि
सही बैठता ही नहीं
-मंजू मिश्रा

4 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सैम मानेकशॉ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है।कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. यही तो जिंदगी है ... गणित ठीक कहाँ बैठता है सबका ... मुश्किल है सब्जेक्ट भी और समझ भी ...

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  3. जिन्दगी गणित नहीं है यह तो कविता है..कविता की तरह गुनगुनाएं जिन्दगी को तो यह सारे राज खोल देती है..

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