नदी हूँ हर तरफ़ बहने की राह रखती हूँ
कोई हो रास्ता उस पर निगाह रखती हूँ
ये और बात है, काँटे हैं मेरे साथ बहुत
गुलाब हूँ मैं महक बेपनाह रखती हूँ
हरएक चीज़ से है प्यार का मेरा रिश्ता
हरएक फूल की मैं दिल में चाह रखती हूँ
तुम्हारी आँख में खटके न कहीं मेरी हँसी
दबा के होंठ मैं नीची निगाह रखती हूँ
हैं मेरे सीने में भी ग़म के कोहसार बहुत
मैं उन में नरगिसी फूलों की चाह रखती हूँ
बुलन्दियों की तरफ़ हर कदम ही चलना है
मैं आसमान पे शैली निगाह रखती हूँ
वाह ! लाजवाब प्रस्तुति ! बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeletebahut, bahut umda!!!
ReplyDeleteबहुत बढिया.....
ReplyDeleteतुम्हारी आँख में खटके न कहीं मेरी हँसी
दबा के होंठ मैं नीची निगाह रखती हूँ