पहले बुढ़ापा कलात्मक होता था आज कल भयानात्मक होता है। यह इस पर निर्भर करता है कि आप बुढ़ापे की दुनियां मैं जवानी के कौन से रास्ते से दाख़िल हुए हैं। विशेषज्ञों ने दावा किया है कि 2035 तक देश में बूढ़ों की संख्या दोगुनी हो जायेगी। अब ये तो दुनियां का नियम है कि यहाँ अगर कोई चीज़ बहुत ज़्यादा मात्रा में है तो उसकी क़ीमत बहुत कम हो जाती है। कालेज के प्रोफ़ेसर ने पाँच लड़कों को कक्षा में खड़ा किया और कहा - तुम चार लड़कों के दिमाग़ की क़ीमत पाँच सौ रुपये प्रति ग्राम और मेरे से कहा - तुम्हारे दिमाग़ की क़ीमत ड़बल यानी हज़ार रुपये प्रति ग्राम है। अपने दिमाग़ क़ीमत जान कर मैं पूरी तरह ख़ुश हो भी नही पाया था कि प्रोफ़ेसर साहब ने बताया कि जो वस्तु बहुत कम मात्रा में पाई जाती है उसकी क़ीमत हमेशा बहुत अधिक होती है। मुझे लगता है बूढ़ों की बढ़ती तादाद से उनकी मार्केट वैल्यू एकदम घट जायेगी । जनसंख्या रोकने के तरीक़े ढूँढ़ निकाले बुढ़ापा रोकने का कोई उपाय नहीं है। अब जब चारों तरफ़ बूढ़े ही बूढ़े हो जायेंगे तो उन्हें बूढ़ा समझ उनकी इज़्ज़त कौन करेगा?
लेखक - डॉ. मोहम्मद युनूस बट
अनुवाद - अख़तर अली
बढ़िया ।
ReplyDeleteबढ़िया और दिलचस्प लेख !
ReplyDeleteहाहा बढ़िया! पर औरत बूढ़ी नहीं होती इस पर थोड़ा खुलासा करना था ?
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20 - 04 - 2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2621 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद