पढ़ती हूँ
और खूब पढ़ती हूँ....
चार ई-पत्रिकाएँ आती है
अखबार भी पढ़ती हूँ..
ये सोचकर कि
लिखना आ जाएगा
किसी ने कहा है कि
एक अच्छा पाठक भी
लेखक बन सकता है
पर अफसोस....
आते हैं भाव मन में
बस..आते ही
दो पंक्तियों में ही
सिमट जाते हैं...
चार डायरियों के
पृष्ठ दो-दो पंक्तियो से
भर गई है..
उन सबको जोड़कर भी देखा...
पर कविता को न बनना था
सो नहीं बनी....
ऐसा लगता है कि
भाग्य में सिर्फ और सिर्फ
संग्रहण,संयोजन
और संम्पादन ही
लिखा है...
मन की उपज..
यशोदा
डायरी में लिखी दो पंक्तिया..
आज तक रखे हैं पछतावे की अलमारी में,
एक दो वादे जो दोनों से निभाये ना गए…
जब भी लिखती हैं बेजोड़ लिखती हैं आप
ReplyDeleteहमेशा लगता है हम बहने पढ़ने के लिए भी ठीक है
पाठक तो अच्छे हैं
तभी तो यहाँ हैं
ढ़ेरों आशीष के संग असीम शुभकामनाएँ
वाह क्या बात है ।
ReplyDeleteआज तक रखे हैं पछतावे की अलमारी में,
ReplyDeleteएक दो वादे जो दोनों से निभाये ना गए…
...बहुत सुन्दर ...
वाह !!! बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर........
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