मुझको बस इक आसरा, उसके सिवा कोई न था
जिस घड़ी कश्ती का मेरी नाखुदा कोई न था।
हैं मेरी तन्हाइयाँ पुरनूर तेरी याद से
तू ही तू था पास मेरे, दूसरा कोई न था।
तुमने मेरा हाथ थामा, मेरे रहबर आनकर
सामने मेरे बचा जब रास्ता कोई न था।
मैं तेरे दर पर सदा देती रही शामो-सहर
ये भी सच है पास मेरे मसअला कोई न था।
बंद आँखों से तेरा दीदार 'शैली' ने किया
एक पल भी दिल में मेरे दूसरा कोई न था।
-श्रीमती आशा शैली
सुन्दर।
ReplyDeleteआशा शैली जी की सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु धन्यवाद
ReplyDeleteप्रभावशाली प्रस्तुति...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई प्रस्तुति पर आपके विचारों का स्वागत।
सुन्दर प्रस्तुति
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