पड़ी मझधार में क़श्ती है किनारा दे दो
मेरे टूटे हुए इस दिल को सहारा दे दो
मुझे दुनिया की नहीं, दिल की नज़र से देखो
मेरी नज़रों को मुहब्बत का इशारा दे दो
मेरी मज़बूर तमन्ना पे करम फ़रमाओ
मेरे ख़्वाबों को हसीं एक नज़ारा दे दो
नहीं मालूम मेरा दिल क्यों बुझा सा है ये
तुम निगाहों से इसे कोई शरारा दे दो
कभी की थी जो ख़ता माफ़ करो उसको तुम
मुझे चाहत का ख़लिश हक़ वो दुबारा दे दो.
बहर --- १२२२ ११२२ ११२२ २२
- महेश चन्द्र गुप्त ‘ख़लिश’
बहुत सुन्दर।
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