हवा से, रोशनी से, ज़िन्दगी से
मैं आजिज आ न जाऊं शायरी से
भरोसा तोड़ता फिरता हूं सबका
मैं क्या बोलूं अपने आदमी से
मैं सहरा से ज्यादा कुछ कहां था
वही रिश्ता प्यासा तिश्नगी से
यही काम आएगी ऐ नूर भाई
भरोसा हो चला है तिरगी से
ये दुनियां और उसकी दुनियादारी
फकत देखा करूं बस बेबसी से
- नूर मुहम्मद 'नूर'
सुन्दर।
ReplyDeleteवाह..खूबसूरत।
ReplyDeleteवाह..खूबसूरत।
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावी।।।।
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