कोई दवा न दे सके मशवरा-ए-दुआ दिया
चारागरों ने और भी दिल का दर्द बढ़ा दिया
दोनों को दे सूरतें साथ ही आईना दिया
इश्क़ बिसोरने लगा हुस्न ने मुस्कुरा दिया
जौक-ए-निगाह के सिवा, शौक-ए-गुनाह के सिवा
मुझको बुतों से क्या मिला मुझ को खुदा ने क्या दिया
थी न ख़िजा की रोक-थाम दामन-ए-इख़्तियार में
हमने भरी बहार में अपना चमन लुटा दिया
हुस्न-ए-नज़र की आबरू सनअत-ए-बरहमन से है
जिस को सनम बना लिया उसको ख़ुदा बना दिया
दाग़ है मुझ पे इश्क़ का मेरा गुनाह भी तो देख
उस की निगाह भी तो देख जिस ने ये गुल खिला दिया
इश्क़ की मम्लिकत में है शोरिश-ए-अक्ल-ए-ना-मुराद
उभरा कहीं जो ये फ़साद दिल ने वहीं दबा दिया
नक़्श-ए-वफ़ा तो मैं ही था अब मुझे ढूंढते हो क्या
हर्फ़-ए-ग़लत नज़र पड़ा तुम ने मुझे मिटा दिया
ख़ुब्स-ए-दरूं दिखा दिया हर दहन-ए-ग़लीज मे
कुछ न कहा हफ़ीज़ ने हंस दिया मुस्कुरा दिया
-हफ़ीज जालंधरी (अदु-अल-असर)
जन्मः 14 जनवरी 1900, जालंधर, पंजाब ब्रिटिश भारत
मृत्युः 21 दिसम्बर 1982, लाहोर, पाकिस्तान
------
इश्क़ बिसोरनेः रोना, जौक-ए-निगाहः दर्शन में रुचि,
शौक-ए-गुनाहः गुनाह करने की चाह, ख़िजाः बुढ़ापा,
सनअत-ए-बरहमनः पूजा करना, मम्लिकतः राज्य,
शोरिश-ए-अक्ल-ए-ना-मुरादः बुद्धि का दुर्भाग्यपूर्ण तूफान ,
------
प्राप्ति स्रोतः रसरंग
चारागरों ने और भी दिल का दर्द बढ़ा दिया
दोनों को दे सूरतें साथ ही आईना दिया
इश्क़ बिसोरने लगा हुस्न ने मुस्कुरा दिया
जौक-ए-निगाह के सिवा, शौक-ए-गुनाह के सिवा
मुझको बुतों से क्या मिला मुझ को खुदा ने क्या दिया
थी न ख़िजा की रोक-थाम दामन-ए-इख़्तियार में
हमने भरी बहार में अपना चमन लुटा दिया
हुस्न-ए-नज़र की आबरू सनअत-ए-बरहमन से है
जिस को सनम बना लिया उसको ख़ुदा बना दिया
दाग़ है मुझ पे इश्क़ का मेरा गुनाह भी तो देख
उस की निगाह भी तो देख जिस ने ये गुल खिला दिया
इश्क़ की मम्लिकत में है शोरिश-ए-अक्ल-ए-ना-मुराद
उभरा कहीं जो ये फ़साद दिल ने वहीं दबा दिया
नक़्श-ए-वफ़ा तो मैं ही था अब मुझे ढूंढते हो क्या
हर्फ़-ए-ग़लत नज़र पड़ा तुम ने मुझे मिटा दिया
ख़ुब्स-ए-दरूं दिखा दिया हर दहन-ए-ग़लीज मे
कुछ न कहा हफ़ीज़ ने हंस दिया मुस्कुरा दिया
-हफ़ीज जालंधरी (अदु-अल-असर)
जन्मः 14 जनवरी 1900, जालंधर, पंजाब ब्रिटिश भारत
मृत्युः 21 दिसम्बर 1982, लाहोर, पाकिस्तान
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इश्क़ बिसोरनेः रोना, जौक-ए-निगाहः दर्शन में रुचि,
शौक-ए-गुनाहः गुनाह करने की चाह, ख़िजाः बुढ़ापा,
सनअत-ए-बरहमनः पूजा करना, मम्लिकतः राज्य,
शोरिश-ए-अक्ल-ए-ना-मुरादः बुद्धि का दुर्भाग्यपूर्ण तूफान ,
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प्राप्ति स्रोतः रसरंग
बहुत खूब
ReplyDeleteहुस्न-ए-नज़र की आबरू सनअत-ए-बरहमन से है
जिस को सनम बना लिया उसको ख़ुदा बना दिया
बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल
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