बरसात की बूंदें
बादलों से धरती के
बीच की दूरी को
मापती हुई बूंदें,
हरियाली की प्रचुरता
देती है धरती को।
एक-एक बूंद
गुब्बारे को जन्म देती है,
वो पानी का गुब्बारा
जिसकी क्षण भर भी
जिंदगी नहीं रहती,
जिसका अस्तित्व जन्म के
साथ नष्ट होता है।
न बातें होती हैं
न यादें शेष रहती हैं
वो गुब्बारा फिर भी
काम कर जाता है,
बारिश में अपना
नाम कर जाता है।
उसे जिंदगी की चिंता
ही कहां रहती है
अनंत से उत्पन्न
क्षणिक जीकर
अनंत में फिर खो जाता है।
जिन्दा रह जाती है
यादों में बस जाती हैं
तो बस बरसात की बूंदें।
- अक्षय नेमा मेख
जिंदगी की चिंता करने वाले को तो कुछ नहीं मिलता।।।
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट है............
PANI KI BOONDO KO AADHAR BANA KAR LIKHI GAYI-- KAVITA ACHHI AUR PRABHAV SHALI HAI- BADAHI - OM SAPRA, DELHI-9
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक बधाई-- --
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