कल तक जहाँ था आज भी वहीँ रह गया।
दर्द फिर जख्मोँ की निशानी रह गया।
एक उम्मीद मेँ उछाल दिया सिक्का तकदीर का
जो हर परत से बुझी सी कहानी कह गया।
मेरे हिस्से की खुशियोँ, सुन लो एक इल्तजा मेरी।
हो जाओ उसकी, जो ताउम्र गमोँ की रवानी सह गया।
शायर बहुत बड़े हो, लिखो दर्द के अफसाने,
सितम सहकर जिसकी आखोँ से सिर्फ पानी बह गया।
-प्रदीप दीक्षित
फेसबुक से
शुभ प्रभात छोटी बहना
ReplyDeleteएक उम्मीद मेँ उछाल दिया सिक्का तकदीर का
जो हर परत से बुझी सी कहानी कह गया।
उम्दा अभिव्यक्ति
शुभ दिवस
एक उम्मीद मेँ उछाल दिया सिक्का तकदीर का
ReplyDeleteजो हर परत से बुझी सी कहानी कह गया।
क्या बात है ! बहुत खूब
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteसावन का आगमन !
: महादेव का कोप है या कुछ और ....?
सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल।
ReplyDeleteसिक्का उछाल कर तकदीर को देखने वालों को ये ही मलाल होता है , सुन्दर प्रस्तुति
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