कितने मिले विचित्र लोग
वसन फाड़ते मित्र लोग
पत्थर से बैठे गुमसुम
जैसे, बस, हों चित्र लोग
योनाचार-रत संत यहां
फिर, भी, कहें पवित्र लोग
किस पर अब विश्वाश करें
धारे छली चरित्र लोग
फैली है दुर्गंध बहुत
छिड़क रहे हैं इत्र लोग
-कलीम अव्वल
प्राप्ति स्रोतः हेल्थ, पत्रिका
बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावुक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाऐं ----
सादर --
कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------
गज़ब। क्या खूब लिखा है
ReplyDeleteकिस पर अब विश्वाश करें
ReplyDeleteधारे छली चरित्र लोग
फैली है दुर्गंध बहुत
छिड़क रहे हैं इत्र लोग
गज़ब अभिव्यक्ति-
पत्थर से बैठे गुमसुम
जैसे, बस, हों चित्र लोग
बहुत सुन्दर , पर इत्र से कब तक पाप छिपाएंगे?
ReplyDeletebahut khoob....sach hai kab tak itr dhak payegi pap ko
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