तू अभी से सो रही है, सुन जरा
रातरानी महकती है सुन जरा।
सुन जरा मेरे लबों की तिश्नगी
तिश्नगी भी चीखती है सुन जरा।
कुछ दिनों से क्यूं हमारे दरमियां
बांसुरी-सी बज रही है सुन जरा।
हदे-शोरो-गुल ये मेरी खामुशी
बेनवा कुछ कह रही है सुन जरा।
हां, अभी भी गोशा-ए-दिल में कहीं
एक नागिन रेंगती है, सुन जरा।
--ओम प्रभाकर
रातरानी महकती है सुन जरा।
सुन जरा मेरे लबों की तिश्नगी
तिश्नगी भी चीखती है सुन जरा।
कुछ दिनों से क्यूं हमारे दरमियां
बांसुरी-सी बज रही है सुन जरा।
हदे-शोरो-गुल ये मेरी खामुशी
बेनवा कुछ कह रही है सुन जरा।
हां, अभी भी गोशा-ए-दिल में कहीं
एक नागिन रेंगती है, सुन जरा।
--ओम प्रभाकर
beautiful
ReplyDeletewaah. waah
ReplyDeleteकुछ दिनों से क्यूं हमारे दरमियां
ReplyDeleteबांसुरी-सी बज रही है सुन जरा।
हदे-शोरो-गुल ये मेरी खामुशी
बेनवा कुछ कह रही है सुन जरा।
... बहुत खूब!
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर
बढ़िया प्रस्तुति।
ReplyDeleteरक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सुंदर गज़ल।
ReplyDelete