न जाने कब से थी
उसे यह शिकायत
मुड़ते न थे घुटने
चलना भी था हिमाकत
जब सीमातीत हो चला दर्द
तो घबराकर बोले घर के मर्द
बुलाओ डॉक्टर ओझा गुनी हकीम
तकलीफ है हमें बेहद
अब यह उठ न सकेगी
चल नहीं सकेगी
झाड़ू-पोछा-खाना-बर्तन
कुछ भी तो न कर सकेगी
बहुत जरूरी है इसका इलाज
वरना कौन करेगा इतने काज
भगवान भी था इसका हमराज
अब नहीं होगा मंदिर का साज
झुक नहीं सकेगी यह
नहीं बैठेगी जानुपात
रखेगी नहीं चरणों में सिर
बिना गति के बेकार है हाथ
आह! जो झुक न सके
चल न सके पीछे-पीछे
आज्ञा मिलने पर, उठ न सके
वह भी क्या औरत जात
-लता शर्मा
स्रोतः हेल्थ...... रविवारीय पत्रिका
कल 13/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
ufff....amazingly touching
ReplyDeleteभावमय करते शब्द ....
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