स्मृतियों की झालर
पूरे चांद की आधी रात में
एक मधुर कविता
पूरे मन से बने
हमारे अधूरे रिश्ते के नाम लिख रही हूं
चांद के चमकीले उजास में
सर्दीली रात में
तुम्हारे साथ नहीं हूं लेकिन
रेशमी स्मृतियों की झालर
पलकों के किनारे पर झूल रही है
और आकुल आग्रह लिए
तुम्हारी एक कोमल याद
मेरे दिल में चुभ रही है..
चांद का सौन्दर्य
मेरी कत्थई आंखों में सिमट आया है
और तुम्हारा प्यार
मन का सितार बन कर झनझनाया है
चांद के साथ मेरे कमरे में उतर आया है
- स्मृति आदित्य 'फाल्गुनी'
साभार- हथेलियों पर गुलाबी अक्षर
वाह
ReplyDeleteजी शुक्रिया -स्मृति
Deleteप्रेम की चुभन भी चाँदनी की तरह नशीली होती है
ReplyDeleteजी शुक्रिया -स्मृति
Deleteसुंदर।
ReplyDeleteजी शुक्रिया -स्मृति
Deleteजी शुक्रिया -स्मृति
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteजी शुक्रिया -स्मृति
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