Saturday, March 10, 2018

हाइकु.....अज्ञात

अंधेरा/अंधकार/तम/तिमिर
सुहागहीन 
अमावस की रात 
तिमिर घोर।

हवा डराया
डटा रहा दीपक
तम की ओर।

दीपक पांव
तम काटी चिकोटी
नेकी का जोर।

तम की छाती
चढ़ गया दीपक 
रोशनी शोर।

छंटा अंधेरा
पूरब में सूरज
हो गई भोर।
-अज्ञात

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-03-2017) को "फूल और व्यक्ति" (चर्चा अंक-2906) (चर्चा अंक-2904) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. बहुत सुन्दर

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  6. ..मैंने आपको इस कंटेंट को पब्लिश करने की अनुमति नहीं दी थी, और न ही ये मेरा कंटेंट है, इसके बावजूद आपने इसको पब्लिश किया, इसको हटाएं, अन्यथा आपके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

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