जब कभी किसी
तन्हा सी शाम
बैठ अकेले चुपचाप
पलटोगे जीवन पृष्ठों को
सच कहना तुम
क्या रोक सकोगे
इतिहास हुए उन पन्नों पर
मुझको नज़र आने से
क्या ये कह पाओगे
भुला दिया है मुझको तुमने
कैसे समझाओगे ख़ुद को
बहते अश्कों में छिपकर
याद मेरी जब आयेगी
शाम की उस तन्हाई में
-गीता तिवारी
सुन्दर
ReplyDeleteबेहतरीन...
ReplyDeleteसादर..
सुन्दर रचना
ReplyDeleteसादर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-03-2018) को ) "घटता है पल पल जीवन" (चर्चा अंक-2923) पर होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी