Friday, March 16, 2018

वो देवी थी या पिशाचिनी थी...पूजा

एक बेचारी
एक बड़ी 
लिए छड़ी
वह थी खड़ी –
मैंने पूछा, कौन हो तुम?
कुछ ना बोली
हो गई गुम

मैं हैरान थी --
वो देवी थी
या पिशाचिनी थी
सोचकर धड़का मन
तभी आहट आई
छन --

उफ ! रूह कांप गई
गला सूख गया
देख के उसको दिल डूब गया

गर्द भरे रूखे केश लहराते थे
पीत मुख पर 
उदासी के साये गहराते थे
शरीर जर्जर, आंखें वीरान थीं
पपड़ाये होठों पर दर्द भरी
अधूरी सी मुस्कान थी

एक बड़ी लिए छड़ी
सच, वही तो थी खड़ी !
पूछा कौन हो तुम ?
बोली-- जानना है तो सुन

मैं दुखियारी हूँ,गमों की मारी हूँ
कुछ पूजते हैं,बाकी लूटते हैं
खरीदते हैं, बेचते हैं
निर्दोष हूँ पर मारते कूटते हैं
दिखाकर लाठी कहा -- 
यह मेरी वोट रूपी शक्ति है
आह! इसी से मुझे सरेआम पीटते हैं
प्रजातंत्र की मुझे मिली है सजा
मैं प्रजा हूँ --- एक बेचारी प्रजा 

© पूजा
27/6/85

6 comments:

  1. वाह!!बहुत सही कहा आपने ।सुंंदर रचना।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-03-2017) को "छोटी लाइन से बड़ी लाइन तक" (चर्चा अंक-2912) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. वाह!!!
    प्रजा !!!
    बहुत खूब....

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  4. वाह!!!
    प्रजा !!!
    बहुत खूब....

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  5. बहुत सुन्दर रचना

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