आपको अपनी अदा की ताज़गी पर नाज़ है
हमको भी अपनी वफा की सादगी पर नाज़ है
आपसे लिपटी हुई पुरवाई को हम क्या कहें
आपको पुरवाई की आवारगी पर नाज़ है
आपकी आँखों ने हमसे तल्ख़ियों में बात की
आपको आँख की इस नाराज़गी पर नाज है
आपने दिल के जो टुकडे कर दिये तो क्या हुआ
हमको अपने दिल की इस दीवानगी पर नाज़ है
आपको ‘घायल’ मुबारक आपकी संजीदगी
हमको हँसती-खेलती इस ज़िंदगी पर नाज़ है
-आर.पी. घायल
बहुत खूब
ReplyDeleteवाह !!! बहुत खूब ....सुंदर रचना
ReplyDeleteलाजवाब अभिव्यक्ति... वाह!!!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (19-03-2018) को ) "भारतीय नव वर्ष नव सम्वत्सर 2075" (चर्चा अंक-2914) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी