जो भी देगा, रब देगा 
सोच रहा हूं कब देगा 
जीते जी मर जाऊं क्या 
जन्नत मुझको तब देगा 
जिसने दी है ज़ीस्त हमें 
जीने का भी ढब देगा 
बहुत भरोसा है जिस पर 
धोखा मुझको कब देगा 
और किसी से मत मांगो 
ऊपर वाला सब देगा 
होगी रहमत की बारिश 
वो गूंगे को लब देगा
कितनी ख़ुशियां दीं उसने 
ग़म का तुहफ़ा अब देगा 

~देवमणि पांडेय 
प्रस्तुतिः नीतू ठाकुर
 
उम्दा रचना ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (14-03-2018) को "ढल गयी है उमर" (चर्चा अंक-2909) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
शुभप्रभात
ReplyDeleteवाह !!!शानदार