गाँव हुआ न मेरा शहर हुआ
क्यूं हर शय बेखबर हुआ
क्यूं हर शय बेखबर हुआ
महफिल हो न सकी हमारी
अपना तो बस ये दोपहर हुआ
मुसाफिर की तरह चल रहें
चलना इधर - उधर हुआ
आफ़ताबे तब्जूम कैसे करे
खामोश हर सफर हुआ
मंजिल की तलाश रही पर
न बसेरा, न कोई घर हुआ
भीड़ ही दिखायी देती रही मुझे
तन्हा यहाँ हर शहर हुआ
-जितेन्द्र 'सुकुमार'
' उदय आशियाना ' चौबेबांधा
राजिम जिला- गरियाबंद, (छग.) - 493 885
प्राप्ति स्रोत : विचार वीथी
बेहतरीन
ReplyDeleteअनुपम रचना...... बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं
Behad khubsurat rachna umdaa !!
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