वह फिर जलाती है
दिल के फ़ासलों के दरम्यां
उसकी लम्बी उम्र का दिया....
कुछ खूबसूरती के मीठे शब्द
निकालती है झोली से
टांक लेती है माथे पे,
कलाइयों पे, बदन पे...
घर के हर हिस्सों को
करीने से सजाती है
फिर.....गौर से देखती है
शायद कोई और जगह मिल जाए
जहाँ बीज सके कुछ मोहब्बत के
फूल
पर सोफे की गर्द में
सारे हर्फ बिखर जाते हैं
झनझना कर फेंके गए लफ़्जों में
दिया डगमगाने लगता है
हवा दर्द और अपमान से
काँपने लगती है
आसमां फिर
दो टुकड़ों में बंट जाता है...
वह जला देती है सारे ख़्वाब
रोटी के साथ जलते तवे पर
छौंक देती है सारे ज़ज़्बात
कढ़ाई के गर्म तेल में
मोहब्बत जब दरवाजे पे
दस्तक देती है
वह चढ़ा देती है सांकल...
दिन भर की कशमकश के बाद
रात जब कमरे में कदम रखती है
वह बिस्तर पर औंधी पड़ी
मन की तहों को
कुरेदने लगती है.....
बहुत गहरे में छिपी
इक पुरानी तस्वीर
उभर कर सामने आती है
वह उसे बड़े जतन से
झाड़ती है, पोंछती है
धीरे-धीरे नक्श उभरते हैं
रोमानियत के कई हंसी पल
बदन में सांस लेने लगते हैं...
वह धीमे से..
रख देती है अपने तप्त होंठ
उसके लबों पे और कहती है
आज करवा चौथ है जान
खिड़की से झांकता चौथ ता चाँद
हौले-हौले मुस्कुराने लगता है......!!
-हरकीरत हीर
......सुरुचि से
नारी जीवन का सच !
ReplyDeleteहर शब्द कहानी कहता चला गया है
ReplyDeleteसच्ची मोहब्बत की।
करवा चौथ पर लिखी गयी रचनाओं में बेहतरीन ।
बहुत गहरे में छिपी
ReplyDeleteइक पुरानी तस्वीर
उभर कर सामने आती है
वह उसे बड़े जतन से
झाड़ती है, पोंछती है
धीरे-धीरे नक्श उभरते हैं
रोमानियत के कई हंसी पल
बदन में सांस लेने लगते हैं...
..बहुत सुन्दर ...
वह धीमे से..
ReplyDeleteरख देती है अपने तप्त होंठ
यथार्थ ...
बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं