भरोसा.............पवन करण
भरोसा
अब भी मौजूद है दुनिया में
नमक की तरह
अब भी
पेड़ों के भरोसे पक्षी
सब कुछ छेड़ जाते हैं
बसंत के भरोसे वृक्ष
बिलकुल रीत जाते हैं
पतवारों के भरोसे नांव
संकट लांघ जाती है
बरसात के भरोसे बीज
धरती में समा जाते हैं
अनजान पुरुष के पीछे
सदा के लिये स्त्री चल देती है
-पवन करण
जन्मः 18 जून,1964
ग्वालियर म.प्र.
अति सुन्दर भावों का संचरण
ReplyDeleteअंजान क्षितिज की ओर चली
ले नव जीवन की डोर चली
चल पड़े जिधर उसके डग पग
ले अपनें जीवन की भोर चली
मधु "मुस्कान "
सुन्दर !
ReplyDeleteपवन जी की यह कविता बहुत ही सुन्दर है ।
ReplyDeleteBharosa aaaj bhi hai ...aur aaj bhi hai yah tutane ke liye.... Bahut sunder rachna ..har pankti bharose ko vykt krti hai !!!
ReplyDelete