Saturday, October 4, 2014

ताने..............पवन करण





 






जिसे मैंनें अधूरा रख दिया पढ़कर
मैं उस किताब के पन्ने पलटता हूँ
मुझे उसमें तुम्हारा दिया एक ताना रखा मिलता है
मेरी सभी किताबों का यही हाल है
तुम्हारे दिये तानों से भरी है वे.

मैंनें जिसे पहना नहीं कई दिनों से
उस शर्ट को अलमारी से निकालता हूँ
देखता हूँ कि उसकी जेब में तुम्हारा दिया
एक ताना मुस्करा रहा है
पहनने के जितने कपड़े मेरे पास
उनकी एक भी जेब ऐसी नहीं
जिसमें तुम्हारा दिया ताना मौजूद न हो.

तुझसे बहुत दूर जाकर भी देख लिया
तुम्हारे तानों में कभी एक भी नही हुआ कम
जहां रुका मैं तुमसे दूर उस कमरे
या फिर यात्रा में बस या सीट पर ट्रेन की
एक भी नहीं छूटा कभी.

तुमसे प्रेम करना आसान नहीं रहा
तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारे तानों से भी
करना पड़ा मुझे बराबर प्रेम.

-पवन करण

pawankaran64@gmail.com

जन्म : 18 जून, 1964, ग्वालियर मध्यप्रदेश

......रसरंग से

7 comments:

  1. वाह ! अनुपम खयालात ! तानों के साथ प्रेम का यह समीकरण प्रभावित करता है !

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  2. अच्छी रचना है , लक्ष्य एक ही है वह है वह और उसका प्रेम ,हाँ कहने का तरीका कुछ अलग अवश्य है ,तानों को माध्यम बना प्रेम का सुन्दर समीकरण , सादर , जीवन के ताने बाने के गवाक्ष से कभी झांकता कभी निहारत ताना

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  3. Prem me to sab kuch sahna padta hai .... Fir yah to mahaz tana tha.... Bahut sunder rachna ..bhawpurn !!

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  4. सही कहा है प्यार में थोड़ा तानों का आचार उसे चटपटा बना देता है ......सुंदर

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