मुद्दतों बाद रू-ब-रू हुए आईने से
ख़ुद को न पहचान सके
जाने किन ख़्यालों में गुम थे
ज़िंदगी तेरी सूरत भूल गये
ख़ुद को न पहचान सके
जाने किन ख़्यालों में गुम थे
ज़िंदगी तेरी सूरत भूल गये
ख़्वाब इतने भर लिये आँखों में
क़िस्से हक़ीक़त के सारे बेमानी लगे
चमकती रेत को पानी समझा
न प्यास बुझी तड़पा ही किये
क़िस्से हक़ीक़त के सारे बेमानी लगे
चमकती रेत को पानी समझा
न प्यास बुझी तड़पा ही किये
एक टुकड़ा आसमान की ख़्वाहिश में
ज़मीं से अपनी रूठ गये
अपनों के बीच ख़ुद को अजनबी पाया
जब भरम सारे टूट गये
ज़मीं से अपनी रूठ गये
अपनों के बीच ख़ुद को अजनबी पाया
जब भरम सारे टूट गये
सफ़र तो चलेगा समेटकर मुट्ठीभर यादें
कुछ तो सौग़ात मिली तुमसे
ऐ ज़िंदगी! चंद अनछुए एहसासात के लिये
दिल से शुक्रिया है तुम्हारा।
कुछ तो सौग़ात मिली तुमसे
ऐ ज़िंदगी! चंद अनछुए एहसासात के लिये
दिल से शुक्रिया है तुम्हारा।
-श्वेता सिन्हा
सफर तो चलेगा समेट कर मुट्ठी भर यादें
ReplyDeleteकुछ तो सौगात मिला तुमसे
ऐ जिंदगी! चंद अनछुए एहसास के लिए
दिल से शुक्रिया है तुम्हारा।
इस बेहतरीन लेखन हेतु साधुवाद आदरणीय श्वेता जी। जिन्दगी को इतने करीब और बारीकी से एक कवि मन ही महसूस कर सकता है।
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteवाह!!श्वेता ,बहुत खूब !!!
ReplyDeleteएक टुकड़ा आसमान की चाहत मेंं
ज़मीं से अपनी रूठ गए ....वाह!!लाजवाब !
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-04-2019) को "यन्त्र-तन्त्र का मन्त्र" (चर्चा अंक-3301) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अपनों के बीच खुद को अजनबी पाया
ReplyDeleteजब भरम सारे टूट गये ...., हृदयस्पर्शी भाव...,,भावुकतापूर्ण श्वेता जी ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 11 अप्रैल 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमुद्दतों बाद रू-ब-रू हुए आईने से
ReplyDeleteख़ुद को न पहचान सके
जाने किन ख़्यालों में गुम थे
ज़िंदगी तेरी सूरत भूल गये....
उदासी के गहरे भाव लिए एक खूबसूरत रचना।
वाह !बहुत सुन्दर प्रिय सखी
ReplyDeleteसादर
एक टुकड़ा आसमान की ख़्वाहिश में
ReplyDeleteज़मीं से अपनी रूठ गये
अपनों के बीच ख़ुद को अजनबी पाया
जब भरम सारे टूट गये बहुत ही बेहतरीन रचना श्वेता जी
ख़्वाब इतने भर लिये आँखों में
ReplyDeleteक़िस्से हक़ीक़त के सारे बेमानी लगे
चमकती रेत को पानी समझा
न प्यास बुझी तड़पा ही किये
बहुत ही हृदयस्पर्शी भावपूर्ण रचना...
वाह!!!