कुछ उथले से कुछ गहरे से।
भाँति भाँति के चित्र उभर कर बूँद बूँद बिखरे से।
हाँ यही स्वप्न और जीवन है।
जिनको जन मानस पालता है।
मन के कोने कोने में।
कुछ हाँ मीठी कुछ तीखी याद में बीते।
किन्तु शीतल शीघ्र गर्म हवा में रीते।
काँच की तरह बिखर जाएँ फ़र्श पर,
पल भर में, सँजोए सारे स्वप्न।
बस यही ज़िन्दगी है।
उम्र के गलियारे हर मोड़ नये होते हैं।
मिले कई बिछड़े कई।
अन्त में कौन किसके साथ होते हैं?
यही ज़िन्दगी है।
-सरिता यादव
कुछ उथले से कुछ गहरे से।
ReplyDeleteभाँति भाँति के चित्र उभर कर बूँद बूँद बिखरे से।
हाँ यही स्वप्न और जीवन है।....,सचमुच यही तो जीवन है ..., अत्यंत सुन्दर सृजन ।
Thanks
Deleteउम्र के गलियारे, हर मोड़ नए होते हैं... वाह!
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (21-04-2019)"सज गई अमराईंयां" (चर्चा अंक-3312) को पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
- अनीता सैनी