मै जो हालात का मारा हूँ, संभल जाऊँगा |
दूर मंज़िल है बहुत राह में दुश्वारी भी
हाथ में हाथ दे वरना मै फिसल जाऊँगा |
बात झूठी हैं तेरी और हैं झूठी कसमें
क्यूँ समझता है कि बातों से बहल जाऊँगा |
दोष मुझमें हैं बहुत, प्यार मगर सच्चा है
साथ तेरा जो मिलेगा तो बदल जाऊँगा |
रूठ जाना जो बहाना है फ़क़त इक पल का
तुम अगर प्यार से देखोगी पिघल जाऊँगा |
तेरी बातें तेरी ख़ुशबू हैं अभी तक मुझमें
मै अगर टूट भी जाऊँ तो संभल जाऊँगा ।
-नादिर खान
http://nadirahmedkhan.blogspot.in/2016/02/blog-post.html
वाह ।
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