सफर में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में, तुम भी निकल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को खुद ही बदल सको तो चलो
यहां किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो
कहीं नहीं कोई सूरज, धुंआ धुंआ है फ़िज़ा
खुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो
यही है ज़िन्दगी, कुछ ख्वाब, चंद उम्मीदें
इन्ही खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
-निदा फ़ाज़ली
http://www.bestghazals.net/2016/10/nida-fazlis-poetry-yahaan-kisi-ko-koi.html
सुन्दर ।
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