Friday, October 21, 2016

काश..............दिव्या माथुर













काश कि उस मनहूस सुबह
मैं सीढ़ी से गिर जाती
मेरी तीमारदारी में तुम्हें
दफ़्तर की देर हो जाती
हलका सा दिल का दौरा
या तुम्हें सुबह पड़ जाता
आराम करो पूरा ह्फ़्ता
डाक्टर साग्रह कह जाता
‘स्कूल छोड़कर आओ पापा’
रघु ही उस दिन ज़िद करता
लाडली तुम्हारी गोद में चढ़
गंदा कर देती सूट नया
सजधज के मेनका सी मैं
काश कि पाती तुम्हें रिझा
काश तुम्हारा मचलके दिल 
द्फ़्तर जाने को न करता
काश कि सूरज देर से उगता
काश अलारम न बजता
काश सुबह हम देर से उठते
काश ये घर न उजड़ता।

-दिव्या माथुर

6 comments:

  1. Replies
    1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (22-10-2016) के चर्चा मंच "जीने का अन्दाज" {चर्चा अंक- 2503} पर भी होगी!
      हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
      डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. मार्मिक रचना

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