न्याय बिक जाता है ...
कोतवाल बिक जाता है....
वकीलों का भी,
हर सवाल बिक जाता है,
सच को भी यहाँ….
अक्सर बिकते देखा है,
मुजरिमों को ऐश....
हमने करते देखा है,
मिलती है सज़ायें..
नेकी ..करने वालो को,
मिटा देते है कभी कभी
ये अंधेरें भी.. उजालो को
हाँ...
इस बात से,
नही मुझे इंकार है,
की नेकियाँ जहां में..
फिर भी बरक़रार है।
-सुरेश पसारी "अधीर"
सुन्दर ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (30-10-2016) के चर्चा मंच "आ गयी दीपावली" {चर्चा अंक- 2511} पर भी होगी!
ReplyDeleteदीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर , दीप पर्व मुबारक !
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteनेकियाँ हैं तभी तो संसार टिका है। .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत सुंदर
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