Thursday, November 6, 2014

मधुर स्मृतियां..............डॉ. सुरेन्द्र मीणा














 
बवण्डर उठ गया यादों का,
वक़्त के फ़ासलों से धरती पर
अंकुरित होते अतीत के बीज
और हरियाली के साथ लहलहातीं
मधुर स्मृतियां चादर फैला रही है
होठों पर मुस्कुराहट की...
बहने लगी बयार फिर से आज,
शांत दरिया में लहरें फिर से उठने लगी हैं
हिलोरे लेने लगती है
यादों के कंकड़ गिरते ही....।

-डॉ. सुरेन्द्र मीणा

... मधुरिमा से

5 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.11.2014) को "पैगाम सद्भाव का" (चर्चा अंक-1790)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

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  2. बहुत सुंदर रचना।

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