Tuesday, November 25, 2014

पाँच क्षणिकाएँ............. डॉ. रमा द्विवेदी

















1. अनुभूति बोध

सदियाँ गुज़र जाती हैं
अनुभूति का बोध उगने के लिए
शताब्दियाँ गुज़र जाती हैं
अनुभूति को पगने के लिए
अनुभूति माँगती है दिल की सच्चाई
सच्चाई में तप कर खरा उतरना
बहुत दुर्लभ प्रक्रिया है
क्षण-क्षण बदलते मन के भाव
अनुभूति की नींव
बारम्बार हिला देते हैं।

2. अहसास

अलग होकर भी
हम अलग कब होते हैं ?
हमारे बीच हमेशा
पसरा रहता है
एक साथ गुज़ारे
हर लम्हे का अहसास।

3. अलगाव

रिश्तों में
भौतिक रूप से
अलगाव हो सकता है, पर
दिल में कोमल भाव
फूलों-सा महकते भी हैं
और त्रासद पल
नासूर की तरह
दहकते भी हैं।

4. ज़िन्दगी की मंज़िल

ज़िन्दगी की मंज़िलों के
रास्ते हैं अनगिनत,
शर्त है कि रास्ते,
ख़ुद ही तलाशने पड़ते हैं।

5. एक ही सूरज

एक ही सूरज यहाँ भी,
एक ही सूरज वहाँ भी,
पर, एक साथ हर जगह,
सुबह नहीं होती।

- डॉ. रमा द्विवेदी

3 comments:


  1. बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |

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  2. सुन्दर प्रस्तुति...बहुत खूब...

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