सोचने के लिए इक रात काफी है
जीने, चंद शाद-ए-हयात काफी है
यारो उनके दीदार के लिए देखना
बस इक छोटी सी मुलाकात काफी है
उनकी उलझन की शक्ल क्या है
कहने के लिए जज्ब़ात काफी है
बदलते इंसान की नियति में
यहॉ छोटा सा हालात काफी है
न दिखाओं आसमां अपना दिल
तुम्हारे अश्कों की बरसात काफी है
खुद को छुपाने के लिए 'सुकुमार'
चश्म की कायनात काफी है
जीने, चंद शाद-ए-हयात काफी है
यारो उनके दीदार के लिए देखना
बस इक छोटी सी मुलाकात काफी है
उनकी उलझन की शक्ल क्या है
कहने के लिए जज्ब़ात काफी है
बदलते इंसान की नियति में
यहॉ छोटा सा हालात काफी है
न दिखाओं आसमां अपना दिल
तुम्हारे अश्कों की बरसात काफी है
खुद को छुपाने के लिए 'सुकुमार'
चश्म की कायनात काफी है
-जितेन्द्र "सुकुमार"
' उदय आशियाना ' चौबेबांधा राजिम जिला- गरियाबंद, (छग.) - 493 885
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई ! आदरणीय सुकुमार जी!
ReplyDeleteधरती की गोद
बहुत सुन्दर गजल हर शब्द अनूठे हैं
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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