Wednesday, November 26, 2014

सब जीवन बीत जाता है....जयशंकर प्रसाद

 









सब जीवन बीत जाता है
धूप छांह को खेल सदृश
सब जीवन बीत जाता है

समय भागता प्रतिक्षण में
नव-अतीत के तुषार कण में
हमें लगाकर भविष्य-रण में
आप कहां छिप जाता है
सब जीवन बीत जाता है

बुल्ले, नहर, हवा के झोंके
मेघ और बिजली के टोंके
जीवन का वह नाता है
सब जीवन बीत जाता है

वंशी को बज जाने दो
मीठी मीड़ों को आने दो
आंख बंद करके गाने दै
जो कुछ हमको आता है

सब जीवन बीत जाता है

-जयशंकर प्रसाद
....मधुरिमा से

2 comments:

  1. जयशंकर प्रसाद जी की सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु धन्यवाद

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  2. सुन्दर प्रस्तुति...

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