Monday, November 11, 2013

बस तो जाते हैं घर सारे बेटों के..............अनिल जलालपुरी



जी भर रोकर जी हल्का हो जाता है
वरना तन-मन जलथल सा हो जाता है

हर ज़र्रे को रोशन करके आख़िर में
शाम ढले सूरज बूढ़ा हो जाता है

बस तो जाते हैं घर सारे बेटों के
बस आँगन टुकड़ा टुकड़ा हो जाता है

जाहिल जब बैठेंगे आलिम के दर पे
हश्र यक़ीनन ही बरपा हो जाता है

उल्फ़त का सागर हूँ, नफ़रत का दरिया
मिलकर मुझसे मुझ जैसा हो जाता है

‘पल्टू साहब’ की बानी है भूखों को
भोजन दो तो पूजा सा हो जाता है

रफ़्ता रफ़्ता सब उम्मीदें मरती हैं
‘धीरे धीरे सब सहरा हो जाता हैं’

(पल्टू साहब-जलालपुर के प्रसिद्ध संत)

अनिल जलालपुरी 09161755586

http://wp.me/p2hxFs-1qO

4 comments:

  1. यही है संत वाणी ,बहुत खूब

    रफ़्ता रफ़्ता सब उम्मीदें मरती हैं
    ‘धीरे धीरे सब सहरा हो जाता हैं’

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  2. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

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  3. बस तो जाते है घर बेटों के ,आँगन के टुकड़े हो जाते हैं.सच्चाई युक्त खुबसूरत पंक्ति

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