ख़ला को छू के आना चाहता हूँ
मैं ख़ुद को आज़माना चाहता हूँ
मेरी ख़्वाहिश तुझे पाना नहीं है
ज़रा सा हक़ जताना चाहता हूँ
तुझे ये जान कर हैरत तो होगी
मैं अब भी मुस्कुराना चाहता हूँ
तेरे हंसने की इक आवाज़ सुन कर
तेरी महफ़िल में आना चाहता हूँ
मेरी ख़ामोशियों की बात सुन लो
ख़मोशी से बताना चाहता हूँ
बहुत तब्दीलियाँ करनी हैं ख़ुद में
नया किरदार पाना चाहता हूं.....!!
प्रखर मालवीय `कान्हा’
आजमगढ़
http://wp.me/p2hxFs-1sL
मैं ख़ुद को आज़माना चाहता हूँ
मेरी ख़्वाहिश तुझे पाना नहीं है
ज़रा सा हक़ जताना चाहता हूँ
तुझे ये जान कर हैरत तो होगी
मैं अब भी मुस्कुराना चाहता हूँ
तेरे हंसने की इक आवाज़ सुन कर
तेरी महफ़िल में आना चाहता हूँ
मेरी ख़ामोशियों की बात सुन लो
ख़मोशी से बताना चाहता हूँ
बहुत तब्दीलियाँ करनी हैं ख़ुद में
नया किरदार पाना चाहता हूं.....!!
प्रखर मालवीय `कान्हा’
आजमगढ़
http://wp.me/p2hxFs-1sL
बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......
ReplyDeleteShukriya Sushma Ji :-)
Deleteतेरे हंसने की इक आवाज़ सुन कर
ReplyDeleteतेरी महफ़िल में आना चाहता हूँ
मेरी ख़ामोशियों की बात सुन लो
ख़मोशी से बताना चाहता हूँ
!!
Tahe -dil se Shukriya Vibha Ji :-)
Deleteबहुत ही लाजवाब गज़ल ... हर शेर नए अंदाज़ का ...
ReplyDeleteBahut Bahut Shukriya Digamber ji :-)
DeleteApka Bahut Bahut aabhar
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