दिल ही तो है, न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आये क्यूँ?
रोएँगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताये क्यूँ?
दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्तां नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम, ग़ैर हमें उठाये क्यूँ?
क़ैद-ए-हयात-ओ-बंद-ए-ग़म असल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाये क्यूँ?
जब वोह जमाल-ए-दिल-फरोज़, सूरत-ए-मेहर-नीमरोज़
आप ही हो नज़ारा-सोज़, परदे में मुंह छुपाये क्यूँ?
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँसितां, नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तेरा ही अक्स-ए-रुख सही, सामने तेरे आये क्यूँ?
ग़ालिब-ए-खस्ता के बगैर, कौन से काम बंद हैं
रोइए ज़ार ज़ार क्यूँ? कीजिये हाय हाय क्यूँ?
मिर्ज़ा ग़ालिब
दैरः मंदिर
रोएँगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताये क्यूँ?
दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्तां नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम, ग़ैर हमें उठाये क्यूँ?
क़ैद-ए-हयात-ओ-बंद-ए-ग़म असल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाये क्यूँ?
जब वोह जमाल-ए-दिल-फरोज़, सूरत-ए-मेहर-नीमरोज़
आप ही हो नज़ारा-सोज़, परदे में मुंह छुपाये क्यूँ?
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँसितां, नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तेरा ही अक्स-ए-रुख सही, सामने तेरे आये क्यूँ?
ग़ालिब-ए-खस्ता के बगैर, कौन से काम बंद हैं
रोइए ज़ार ज़ार क्यूँ? कीजिये हाय हाय क्यूँ?
मिर्ज़ा ग़ालिब
दैरः मंदिर
बहुत सुंदर
ReplyDeleteमित्रों कुछ व्यस्तता के चलते मैं काफी समय से
ब्लाग पर नहीं आ पाया। अब कोशिश होगी कि
यहां बना रहूं।
आभार
चलिए माफ किया..पर जब आए तो खूबसूरत गजल से इसी तरह हमें रुबरु कराते रहें
ReplyDeleteखूबशूरत ग़ज़ल
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