आस के रंगीं पत्थर कब तक गारों में लुढ़काओगे
शाम ढले कोहसारों में अपना खोज न पाओगे
जाने - पहचाने- से चेहरे अपनी सम्त बुलाएँगे
क़द्-क़दम पर लेकिन अपने साए से टकराओगे
हर टीले की ओट से लाखों वहशा आँखें चमकेंगी
माज़ी की हर पगडण्डी पर नेज़ों से घिर जाओगे
फ़नकारों का ज़हर तुम्हारे गीतों पर जम जाएगा
कब तक अपने होंठ, मेरी जां,सांपों से डसवाओगे
चीखेंगी बदमस्त हवाएँ ऊँचे-ऊँचे पेड़ों में
रूठ के जानेवाले पत्तों! कब तक वापस आओगे
जादू की नगरी है ये प्यारे, आवाजों पर ध्यान न दो
पीछे मुड़कर देख लिया तो पत्थर के हो जाओगे
शाम ढले कोहसारों में अपना खोज न पाओगे
जाने - पहचाने- से चेहरे अपनी सम्त बुलाएँगे
क़द्-क़दम पर लेकिन अपने साए से टकराओगे
हर टीले की ओट से लाखों वहशा आँखें चमकेंगी
माज़ी की हर पगडण्डी पर नेज़ों से घिर जाओगे
फ़नकारों का ज़हर तुम्हारे गीतों पर जम जाएगा
कब तक अपने होंठ, मेरी जां,सांपों से डसवाओगे
चीखेंगी बदमस्त हवाएँ ऊँचे-ऊँचे पेड़ों में
रूठ के जानेवाले पत्तों! कब तक वापस आओगे
जादू की नगरी है ये प्यारे, आवाजों पर ध्यान न दो
पीछे मुड़कर देख लिया तो पत्थर के हो जाओगे
-नूर बिजनौरी
कोहसारों: पर्वतों, नेज़ों: बरछियां, बदमस्त: तूफानी
कोहसारों: पर्वतों, नेज़ों: बरछियां, बदमस्त: तूफानी
प्रसिद्ध पाकिस्तानी श़ायर
पूरा नामः नूर-उल-हक़ सिद्दीकी
जन्मः 24 जनवरी, 1924.
बिजनौर, उ.प्र.
पूरा नामः नूर-उल-हक़ सिद्दीकी
जन्मः 24 जनवरी, 1924.
बिजनौर, उ.प्र.
"Aas--meri jaan " bhut sunder guftgu jadoo ki nagri me.
ReplyDeleteaapki rachnaaon me shabdon kaa mail anupam hotaa hai
ReplyDeleteफ़नकारों का ज़हर तुम्हारे गीतों पर जम जाएगा
ReplyDeleteकब तक अपने होंठ, मेरी जां,सांपों से डसवाओगे
चीखेंगी बदमस्त हवाएँ ऊँचे-ऊँचे पेड़ों में
रूठ के जानेवाले पत्तों! कब तक वापस आओगे
जादू की नगरी है ये प्यारे, आवाजों पर ध्यान न दो
पीछे मुड़कर देख लिया तो पत्थर के हो जाओगे
सलाम नूर बिजनौरी को सलाम यशोधरा को जिन बिजनौरी दियो पढ़ाय
बहुत सुन्दर व बेहतरीन शब्दों से अलंकृत आपकी रचना , आदरणीय श्री यशोदा जी को धन्यवाद
ReplyDeleteसूत्र आपके लिए अगर समय मिले तो --: श्री राम तेरे कितने रूप , लेकिन ?
* जै श्री हरि: *
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। आभार।
ReplyDeleteकोमल भावो की अभिवयक्ति......
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