शाख- शाख पर मौसमे-गुल ने ग़जरे से लटकाए थे
मैंनें जिस दम हाथ बढ़ाया, सारे फूल पराए थे
कितने दर्द चमक उठते हैं फ़ुरकत के सन्नाटे में
रात-रात भर जाग के हमने ख़ुद ये ज़ख़्म लगाए थे
तेरे गमों का ज़िक्र ही क्या,अब जाने दे,ये बात न छेड़
हम दीवाने मुल्के-ज़ुनूं में बख़्ते-सिकंदर लाए थे
दिल की वीरां बस्ती मुझसे अक्सर पूछा करती है
बसते हैं किस देश में वो लोग, जो यहाँ आए थे
पिछली रात को तारे अब भी झिलमिल-झिलमिल करते हैं
किसको खबर है, इक शब हमने कितने अश्क बहाए थे
आज जहां की तारीकी से दुनिया बच कर चलती है
हमने इस वीरान महल में लाखों दीप जलाए थे
मुझको उनसे प्यार नहीं है, मुझको उनके नाम से क्या
आँखें यूं ही भर आई थी, होठ यूं ही थर्राए थे
मैंनें जिस दम हाथ बढ़ाया, सारे फूल पराए थे
कितने दर्द चमक उठते हैं फ़ुरकत के सन्नाटे में
रात-रात भर जाग के हमने ख़ुद ये ज़ख़्म लगाए थे
तेरे गमों का ज़िक्र ही क्या,अब जाने दे,ये बात न छेड़
हम दीवाने मुल्के-ज़ुनूं में बख़्ते-सिकंदर लाए थे
दिल की वीरां बस्ती मुझसे अक्सर पूछा करती है
बसते हैं किस देश में वो लोग, जो यहाँ आए थे
पिछली रात को तारे अब भी झिलमिल-झिलमिल करते हैं
किसको खबर है, इक शब हमने कितने अश्क बहाए थे
आज जहां की तारीकी से दुनिया बच कर चलती है
हमने इस वीरान महल में लाखों दीप जलाए थे
मुझको उनसे प्यार नहीं है, मुझको उनके नाम से क्या
आँखें यूं ही भर आई थी, होठ यूं ही थर्राए थे
-नूर बिजनौरी
प्रसिद्ध पाकिस्तानी श़ायर
पूरा नामः नूर-उल-हक़ सिद्दीकी
जन्मः 24 जनवरी, 1924.
बिजनौर, उ.प्र.
पूरा नामः नूर-उल-हक़ सिद्दीकी
जन्मः 24 जनवरी, 1924.
बिजनौर, उ.प्र.
फ़ुरकत: ज़ुदाई, मुल्के-ज़ुनूं: पागलों का देश, बख़्ते-सिकंदर: सिकंदर का भाग्य, तारीकी: अंधकार
No comments:
Post a Comment