बात बेबात की बातों में तो पैदा न करो
चोट पर चोट न दो ज़ख्म को गहरा न करो
हम ग़रीबों के मकानात टपकते हैं बहुत
बादलो खेत पे बरसो यहां बरसा न करो
जिस्म पर इसके ज़रूरी है दरख्तों का लिबास
काट कर पेड़ मिरे देश को नंगा न करो
देखने को तुम्हें आ जाते हैं बाहर आंसू
ऐ सितारो ! शबे-तन्हाई में चमका न करो
रंगो-ख़ुशबू से ज़माने को अदावत है बहुत
ऐ गुलो इस तरह गुलज़ार में महका न करो
आदमी ही नहीं इस शहरे-सितमगर में ‘शफ़ीक़’
तुम दरख्तों से भी साये की तमन्ना न करो
शफ़ीक़ रायपुरी 09406078694
चोट पर चोट न दो ज़ख्म को गहरा न करो
हम ग़रीबों के मकानात टपकते हैं बहुत
बादलो खेत पे बरसो यहां बरसा न करो
जिस्म पर इसके ज़रूरी है दरख्तों का लिबास
काट कर पेड़ मिरे देश को नंगा न करो
देखने को तुम्हें आ जाते हैं बाहर आंसू
ऐ सितारो ! शबे-तन्हाई में चमका न करो
रंगो-ख़ुशबू से ज़माने को अदावत है बहुत
ऐ गुलो इस तरह गुलज़ार में महका न करो
आदमी ही नहीं इस शहरे-सितमगर में ‘शफ़ीक़’
तुम दरख्तों से भी साये की तमन्ना न करो
शफ़ीक़ रायपुरी 09406078694
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (08-11-2013) को "चर्चा मंचः अंक -1423" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
ReplyDeleteभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
ReplyDeleteBHUT KHOOB
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