Wednesday, November 2, 2016

चांद तन्हा है आसमां तन्हा...मीना कुमारी

 
चांद तनहा है आसमां तन्हा
दिल मिला है कहां-कहां तनहा

बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआं तन्हा  

जिंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा

हमसफर कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे यहां तन्हा

जलती-बुझती-सी रौशनी के परे
सिमटा-सिमटा सा इक मकां तन्हा

राह देखा करेगा सदियों तक 
छोड़ जाएंगे यह जहां तन्हा...  

-मीना कुमारी

4 comments:

  1. आपके अल्फाज़ दिल को छू गए.

    ReplyDelete
  2. मीना कुमारी तन्हा ही रही । बहुत सुन्दर ।

    ReplyDelete
  3. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 03/11/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

    ReplyDelete